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पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी / परिचय

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जीवन परिचय

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म. 27 मई 1894 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के खैरागढ़ में हुआ था। उनका निधन 18 दिसंबर, 1971 को रायपुर के डी.के.अस्पताल हो गया। वे सरस्वती के कुशल संपादक थे तथा उन्हें साहित्य वाचस्पति और मास्टरजी के नाम से नाम से जाना जाता है। वे यह प्रसिद्ध निबंधकार थे। इनके पिता श्री पुन्नालाल बख्शी खैरागगढ़ प्रतिष्ठित व्यक्ति थे।

शिक्षा: पदुमलाल बख्शी की प्राइमरी शिक्षा खैरागढ़ में ही हुई। 1911 में यह मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में बैठे। हेडमास्टर एन.ए. गुलामअली के निर्देशन पर उनके नाम के साथ उनके पिता नाम पुन्नालाल लिखा गया। तब से यह अपना पूरा नाम पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी लिखने लगे। मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में यह अनुत्तीर्ण हो गये। उसी वर्ष 1911 में इन्होंने साहित्य जगत में प्रवेश किया। 1912 में इन्होंने मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास की। उच्च शिक्षा के लिए इन्होंने बनारस के सेंट्रल हिन्दू कालेज में प्रवेश लिया। 1916 में ही इनकी नियुक्ति स्टेट हाई स्कूाल राजनाँदगाँव में संस्कृत अध्यापक के पद पर हुई।

विवाह

सन् 1913 में लक्ष्मी देवी के साथ उनका विवाह हो गया। 1916 में उन्होंने बी.ए.की उपाधि प्राप्त की। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त करने के साथ - साथ साहित्य सेवा के क्षेत्र में आये और सरस्वती में लिखना प्रारम्भ किया। इनका नाम द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकारों में लिया जाता है।

कार्यक्षेत्र

1911 में जबलपुर से निकलने वाली हितकारिणी में बख्शी की प्रथम कहानी तारिणी प्रकाशित हो चुकी थी। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने राजनांदगाँव के स्टेट हाई स्कूपल में सर्वप्रथम 1916 से 1919 तक संस्कृत शिक्षक के रूप में सेवा की। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने अपने साहित्यिक जीवन का शुभारम्भ कवि रूप में किया था। 1916 ई से लेकर लगभग 1925 ई. तक इनकी स्वच्छन्दतावादी प्रकृति की फुटकर कविताएँ तत्कालीन पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। बाद में शतदल् नाम से इनका एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी को वास्तविक ख्याति आलोचक तथा निबन्धकार के रूप में मिली।

सरस्वती पत्रिका के संपादक

सन् 1920 में यह सरस्वती के सहायक संपादक रूप में नियुक्त किये गये और एक वर्ष के भीतर ही 1921 में वे सरस्वती के प्रधान संपादक बनाये गये जहाँ वे अपने स्वेच्छा से त्यागपत्र देने तक 1925 तक उस पद पर बने रहे। सन् 1929 से 1949 तक खैरागढ़ विक्टोरिया हाई स्कूल में अंग्रेज़ी शिक्षक रूप में नियुक्त रहे। तब सरस्वती हिन्दी की एक मात्र ऐसी पत्रिका थी जो हिन्दी साहित्य की आमुख पत्रिका थी। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपादन में प्रारंभ इस पत्रिका के संबंध में सभी विज्ञ पाठक जानते हैं। सन् 1920 में द्विवेदी जी ने पदुमलाल पन्नालाल बख्शी की संपादन क्षमता को नया आयाम देते हुए इन्हें सरस्वती का सह-संपादक नियुक्त किया। फिर 1921 में वे सरस्वती के प्रधान संपादक बने। यही वो समय था जब विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने हिन्दी के स्तरीय साहित्य को संकलित कर सरस्वती का प्रकाशन जारी रखा।

साहित्यिक परिचय

साहित्य जगत में साहित्यवाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का प्रवेश सर्वप्रथम कवि रूप में हुआ था। कहा जाता है कवि व्यक्तित्व जितना सर्वोपरि होगा साहित्य के लिए उतना ही महत्वपूर्ण भी। बख्शी जी इस कसौटी पर खरे उतरते हैं। उनकी रचनाओं में उनका व्यक्तित्व स्पष्ट परिलक्षित होता है। बख्शी जी मनसा वाचा और कर्मणा से विशुद्ध साहित्यकार थे। मान प्रतिष्ठा पद या कीर्ति की लालसा से कोसों दूर निष्काकम कर्मयोगी की भाँति पूरी ईमानदारी और पवित्रता से निश्छल भावों की अभिव्यक्ति को साकार रूप देने की कोशिश में निरन्तर साहित्य सृजन करते रहे।

आरम्भ में बख्शी जी की दो आलोचनात्मक कृतियाँ प्रकाशित हुईं:

  • हिन्दी साहित्य विमर्श (1924)
  • विश्व साहित्य (1924)

इन कृतियों में भारतीय एवं पाश्चात्य साहित्य सिद्धान्तों के सामंजस्य एवं विवेचन की चेष्टा की गयी है। विश्व साहित्य में यूरोपीय साहित्य तथा पाश्चात्य काव्य मत पर कुछ फुटकर निबन्ध भी दिये गये हैं। इन पुस्तकों अतिरिक्त बख्शी जी दो अन्य आलोचनात्मत्मप कृतियाँ बाद में प्रकाशित हुईं. हिन्दी कहानी साहित्य और हिन्दी उपन्यास साहित्य। निबन्ध कहानी साहित्य और हिन्दी उपन्यास साहित्य। निबन्ध लेखन के क्षेत्र में पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी एक विशिष्ट शैलीकार के रूप में सामने आते हैं। इन्होंने जीवन, समाज, धर्म, संस्कृ ति और साहित्य आदि विभिन्न विषयों पर उच्च कोटि के ललित निबन्ध लिखे हैं।

महाकौशल के रविवासरीय अंक के संपादन कार्य भी मास्टर जी ने 1952 से 1956 तक किया तथा 1955 से 1956 तक खैरागढ़ में रहकर ही सरस्वती का संपादन कार्य किया। तीसरी बार यह 20 अगस्त 1959 में दिग्विजय कालेज राजनांदगाँव में हिन्दी के प्रोफेसर बने और जीवन पर्यन्त वहीं शिक्षकीय कार्य करते रहे। इसी मध्य 1949 से 1957 के दरमियान ही मास्टरजी ही महत्त्वपूर्ण संग्रह - प्रसिद्ध निबंध संग्रह प्रकाशित हुए जिनमें हम मेरी अपनी था मेरा देश मेरे प्रिय निबंध वे दिन समस्या और समाधान नवरात्र जिन्हें नहीं भूलूंगा हिन्दी साहित्य एक ऐतिहासिक समीक्षा अंतिम अध्याय को गिना सकते हैं।

प्रकाशित कृतियाँ

बक्शी ग्रन्थावली पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की रचनाओं की ग्रन्थावली आठ खण्डों में विभक्त है जो निम्नवत है.

  • बक्शी ग्रन्थावली; ग्रन्थावली एवं संक्षिप्त विवरण
  • बख्शी ग्रन्थावली.1 कविताएँ नाटक एकांकी उपन्यास
  • बख्शी ग्रन्थावली.2; कथा साहित्य.बाल कथाएँ
  • बख्शी ग्रन्थावली.3; समीक्षात्मक निबन्ध
  • बख्शी ग्रन्थावली.4; साहित्यिक निबन्ध
  • बख्शी ग्रन्थावली.5; साहित्यिक सांस्कृतिक निबन्ध
  • बख्शी ग्रन्थावली.6; संस्मरणात्मक निबन्ध
  • बख्शी ग्रन्थावली.7; अन्य निबन्ध
  • बख्शी ग्रन्थावली.8 अन्य निबन्ध सम्पादकीय डायरी

सम्मान

1969 में सागर विश्वविद्यालय से द्वारिका प्रसाद मिश्र, तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा डी.लिट् की उपाधि से विभूषित किया गया। इसके बाद उनका लगातार हर स्तर पर अनेक संगठनों द्वारा सम्मान होता रहा। उन्हें उपाधियों से विभूषित किया जाता मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन मध्य प्रदेश शासन आदि प्रमुख हैं। सन 1949 में उन्हें हिन्दी साहित्य सम्मलेन द्वारा साहित्य वाचस्पति से विभूषित किया गया।

उनका निधन सन 18 दिसंबर, 1971 को रायपुर के डी.के. अस्पताल में हो गया।