भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पनखड / गौतम अरोड़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्है, इण रूंख री लीली कूंपळ,
च्यारूमेर पीळै पानां सूं घिरयोडी
इतरावूं म्हारी लिलोती माथै।
बगत बायरै री तीखी मार,
अर
होळै होळै खिरता पीळा पान
जाणै कद निवडैला
म्हारे जीवण रो
ओ पनखड।