भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परछाई / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परछाई
परछाई उतनी ही जीवित है
जितने तुम
तुम्हारे आगे पीछे
या तुम्हारे भीतर छिपी हुई
या वहाँ जहाँ से तुम चले गए हो।