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परछाई / मंगलेश डबराल
Kavita Kosh से
परछाई
परछाई उतनी ही जीवित है
जितने तुम
तुम्हारे आगे पीछे
या तुम्हारे भीतर छिपी हुई
या वहाँ जहाँ से तुम चले गए हो।