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परदे / उदयन वाजपेयी
Kavita Kosh से
माँ धूप में बैठी है। (ओफ़ कितने दिनों बाद मैं माँ को इस तरह धूप में बैठा देख पाया हूँ, कितने दिनों बाद ...)। माँ धूप में बैठी है। जाने किसी बात पर हँसते पिता गुसलखाने से लौटते हुए आँगन में ठहर गये हैं। उनकी सफ़ेद धोती उनकी तोंद पर अटकी है। आँगन में सूखते कपड़ों के असंख्य परदे हवा में डोल रहे हैं। इन्हीं में से किसी एक के पीछे न होने का मंच तैयार हो चुका है। माँ की बन्द आँखों के पीछे पिता घर से दूर होते जा रहे हैं।
बरसों अपने जीवन पर फिसलने के बाद नाना नानी की मौत के सामने जा खड़े हुए हैं।