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परवाह क्यों करें / सोम ठाकुर

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कल सूरज डूबेगा सिर्फ़ दर्द- दाहों में
कल क़ि परवाह क्या करें
आज चाँदनी भर ले अलसाई बाँहों में
कल क़ि परवाह क्या करें

शबनम होगी उदास, झुलसेंगी तितलियाँ
आई है ऐटमी खबर कोई
खुशबू के ताजमहल रहेंगे न सपनों में
रहेगा न फूल का नगर कोई
कल शायद घूमे हम सूनी दरगाहों में
कल क़ि परवाह क्या करें

सीख लिया खूब गुलाबी मन के कानों ने
चितवन क़ि सरगम पर झूमना
आता है भूल से शरारती हवाओं को
मौसम का गर्म गाल चूमना
गूँथे हुए साए बिखरा दे इन राहों में
कल क़ि परवाह क्या करें

खोल गयी दरवाजा छूअनों की बिजलियाँ
साँसों की मीठी पुरवाई का
एक ही इशारा है अंगुली चटखाने का
एक ही इशारा अंगड़ाई का
कांटें यह रात आज प्यास के गुनाहों में
कल क़ि परवाह क्या करें
कल सूरज डूबेगा सिर्फ़ दर्द-दाहों में
कल क़ि परवाह क्या करें