भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पराई नज़र : बर्लिन को अलविदा / हाइनर म्युलर / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोठरी में बैठा हूँ मैं,
सामने पन्ना ख़ाली है अब तक
दिमाग में एक नाटक है, जिसका न कोई दर्शक है
विजेता हैं बहरे
पराजितों को बोलना न आया

पराई एक नज़र
और यह शहर पराया
खिड़की के सामने से भूरे-पीले बादल हैं सरकते
भूरे-गोरे हैं कबूतर
बर्लिन के ऊपर हगते

14.12.1994

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य