परिचित रास्ता / मिथिलेश श्रीवास्तव
जब घर लौटने में देर होने लगती है
हम सुरक्षित समझकर एक परिचित रास्ता चुनते है
लगता है हम जल्दी जरूर घर पहुँच जाएँगे
सकुशल घर पहुँचकर हम गहरी नींद सो जाते हैं
हमारे घोड़ों को कोई दूसरा खोल ले जाता है
घोड़ों के जाने की आहटें नींद में नहीं आतीं
परिचित रास्ते पर चलते हुए पिता
बेटियों को उनके घर जल्दी पहुँचा आते हैं
वे इतने थके होते हैं कि भूल जाते हैं
परिचित दुनिया की ख़ौफ़नाक आवाज़ें जो
बराबर बेटियों के कानों में बजती रहती हैं ।
रोशनी में भी हम परिचित रास्ते पर ही चलते हैं
जहाँ हम कोई नई दुनिया खोज नहीं पाते
हम चाहने लगते हैं
कोई वास्कोडिगामा खोज दे हमारे लिए एक नया कोचीन
कोई सिकन्दर हम से हार कर लौट जाए अपने वतन
परिचित रास्ते पर
गिरी हुई बर्फ़ बहुत खलती है धूप अधिक जलाती है
क्रान्तिकारियों में घर लौटने की इच्छा बलवती हो जाती है
परिचित रास्ते पर
पड़ने वाली नदियाँ बहुत उफनती हैं
काँटे नुकीले चालाक और चुस्त होते हैं ।
परिचित रास्ते के दोनों ओर बने आलीशान घरों को
देखकर हम घर बनाने के पचड़ों में पड़ जाते हैं
घर बनाकर घर सजाने में लग जाते हैं
कुछ पुरानी चीज़ें बताती हैं
हम लोग कई पुश्तों से
परिचित रास्ते ही चलते चले आ रहे हैं ।