परिवर्तन / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
एक लंबी चुप्पी के बाद
जब धरती
आग की हाँडी बन गई
और जिसकी बौराई हुई लपटों में
आसमान सिंदूर पुते औघड़ की तरह
लाल हो उठा
तब ताड़ के पेड़ पर अचानक ही
एक सोने का सिंहासन दिखाई दिया
जिस पर शुभ्र स्फटिक से बने वस्त्र को ओढ़े
सोने की अँगुलियों में
मोतियों की अंगुठी पहने
कोई देव पुरुश बर्फीली हँसी हँस रहे थे
और जब उनकी बर्फीली हँसी से
धरती के मेरुदंड के बीचोबीच
झुरझुरी दौड़ने लगी
तभी उन्होंने कुछ गंभीर होते हुए
नीचे बौने बने
खजूर की शक्ल में खड़ी भीड़ को
रेंगते हुए जीवों के जुलूस से
कहना शुरु किया
मित्रों ! मैं आपलोगों के लिए हूँ
आप मेरे लिए
आपका सुख मेरा सुख है
और मेरा दुख आपका दुख
फिर यह सब क्यों होता है
कि धरती के साथ साथ
आसमान भी लाल हो उठता है
मुझे काफी दुख है
जब आप सबों ने मुझे
अपनी सामर्थ्य से स्वर्ग भेज ही दिया
तो फिर आप सब ऐसा क्यों करते हैं
कि मुझे लाचार किया जाता है
कुछ समय के लिये ही सही
नरक को झांक आने के लिए
मेरे सुख निर्माताओं
मेरी परेशानी का कारण न बनें
जिस तरह मैंने
आपलोगों को आश्वासनों का अमृत पिलाया
और उसके ही नशे में गोलोक हासिल कर लिया है
आपलोग भी कुछ ऐसी ही कोशिश करें
वादे गढ़ें
अभिनय करें
स्वर्ग आपके हाथ में होगा
फिर यह सेवक
इस नरक में नहीं
स्वर्ग में आपके साथ होगा
इतना कह
उस देवपुरुश की बर्फीली आवाज
रुक गई
मात्र एक सर्दीली लहर
पूरे परिवेश को चबाती रही
सब चुप थे
और भीड़ के बीच उसकी प्रेती हँसी
आती रही/जाती रही