भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परिवर्तन / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
जानता हूँ उन सभी परिवर्तनों को
जो कि मुझमें अभी तक होते रहे हैं
देखिए ना,
पड़ा रहता था कभी मैं किलकता या अँगूठे को चूसता
या कभी पैयाँ फेंकता अपने खटोले में
तथा अब, बहुत कम, केवल ज़रूरत आ पड़े तब बोलता हूँ ।