परिधि वाला प्यार / रश्मि शर्मा
उसने खींच दी
लक्ष्मण रेखा
इस हिदायत के साथ
कि मेरा प्रेम
एक परिधि में पनपता है
जीता है
और दायरे ही इसके
खाद-पानी हैं
जो कभी
लॉंघी लकीर
तो समझ लेना
एक अग्निपरीक्षा और होगी
मैंने माना
हर बात क्योंकि,
आकंठ डूबी थी
उसके प्रेम में
लगा, बहुत बड़ी है परिधि
क्यों लॉंघना इसे
मैं तो हथेली में उसकी
छुप जाना चाहती हूँ
पलकों में उसकी
बस जाना चाहती हूँ ।
अब हम थे एक खुश जोड़ा
प्रेमिल-से, प्रेम में डूबे
मैं समर्पित शतुरमुर्ग
और उसे अपने
मज़बूत घेरे का गुमान
मैं बन गई
उसके प्यार के आसमान का
चमकता चॉंद
वक़्त गुज़रा
यकीन के पक्के धागे से
रिश्ता लगा ज्यों फौलाद
आया ख़्याल
एक बार लॉंघी जाए परिधि
सुना है
हर रिश्ते से मज़बूत होता है
प्यार का रिश्ता
तो क्यों न
खुलकर ली जाए
एक बार सॉंस
बस
यहीं, जा के समझ आया
औरत-मर्द के प्यार का फर्क
स्त्री हो कूपमंडूक
तो सर माथे बिठाए पुरुष
और जो
ले सॉंस खुलकर कभी
तो एक-एक सॉंस का हिसाब देते
उम्र बीत जाए!
सदियों में जो पाए
उसे,लम्हें!
तो आओ न, मिलकर
हम एक ऐसी परिधि बनाऍं
जिसकी शर्त हो कि
इसे दोनों लॉंघ न पाएँ
अब शर्त हो बराबर की
सजाऍं भी हों एक
या फिर
तुम उड़ो मुक्त गगन में, तो
मेरे लिए भी हो
सारा आकाश!