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परोपदेश / रामधारी सिंह "दिनकर"
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(१)
औरों को उपदेश सुनाना चुम्बन-सा ही है यह काम,
खर्च नहीं इसमें कुछ पड़ता, मन को मीठा लगता है।
(२)
आयु के दो भाग हैं, पहली उमर में
आदमी रस-भोग में आनन्द लेता है।
और जब पिछ्ली उमर आरम्भ हो जाती,
वह सभी को त्याग का उपदेश देता है।