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पर्यटन-वर्ष / भारत यायावर
Kavita Kosh से
हम नहीं जाएँगे
नहीं जाएँगे अब
बार-बार
हम नहीं जाएँगे
हम पहली बार गए
तो एक स्वच्छ तालाब में
डूबा चमकता चाँद था
जिसे हम ठीक-ठीक देख तो सकते थे
देख कर ख़ुश तो हो सकते थे
फिर गए तो तालाब में
गंदला पानी था
जिससे हम अपना मुँह भी
नहीं धो सकते थे
फिर गए तो वहाँ पानी भी नहीं था
सिर्फ़ कीचड़ में लथपथ
कुछ कछुए और मेंढक और केंकड़े
अपना घर तलाश रहे थे
और अब वह
एक बड़ा शौचालय हो गया है
हम नहीं जाएँगे
नहीं जाएँगे अब
पर किस तरह पूरा वर्ष
पर्यटन-वर्ष मनाएँगे?
(रचनाकाल:1991)