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पलकों पे फिर चराग़ जलाने लगे हैं आप / आरती कुमारी

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पलकों पे फिर चराग़ जलाने लगे हैं आप
ये दास्ताने ग़म जो सुनाने लगे हैं आप

ख़्वाबों में आके मुझको सताने लगे हैं आप
हैरान हूँ कि वादा निभाने लगे हैं आप

क्या बात हो गयी कि मेरा दिल तड़प गया
क्या दर्द है कि अश्क़ बहाने लगे हैं आप

आहट सी क्या हुई कि मेरा दिल सहम गया
अब दिल की धड़कनों को जगाने लगे हैं आप

अब तक तो इस जमीन पे चलना न आ सका
क्यूँ सर पे आसमान उठाने लगे हैं आप