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पलटनिया पिता-3 / अनिल कार्की

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पलटनिया पिता
तुम जब लौटोगे
भूगोल और देश की सीमाओं से
कभी मनुष्यता की सीमा के भीतर
जेब से बटुआ निकाल लोगे
निहार लोगे
ईजा (माँ) की फोटुक
बच्चों की दन्तुरित मुस्कान
जाँच लोगे मेहनत की कमाई
एक दिहाड़ी मजदूर की तरह

कहीं किसी पहाड़ी स्टेशन में
(जो अल्मोड़ा भी हो सकता है)
उतरोगे बस से
बालमिठाई के डब्बों के साथ
पहुँचोगे झुकमुक अंधेरे में
अपने आँगन
मिठाई के डब्बे से
निकाल लोगे एक टुकड़ा मिठाई

मुलुक मीठी मिठाई-सा
घुल आयेगा बच्चों की
जीभ पर
जबकि देश पड़ा रहेगा
लौट जाने तक
रेलवे टिकट के भीतर
या संसद में होती रहेगी
उसके संकटग्रस्त होने की चर्चा