भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पशोपेश / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
मेरी बेटी खिड़की पर खड़ी होगी
और मैं
इस रफ्तार में फंसा हूं
ये रफ्तार नहीं थमने की
मैं थमा हूं
और इस रफ्तार के ख़िलाफ़
ख़तरा मोल लेने से
मेरी जान जा सकती है
मगर मैं कब तक थमा रहूंगा
ये रफ्तार नहीं थमने की
और मेरी बेटी
खिड़की पर खड़ी होगी
रचनाकाल:1999