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पश्चिम की स्त्री-2 / राजशेखर
Kavita Kosh से
खेल का
करना संचार
तरंग में लहराती
भ्रूलेखा दिखाना
रम्य मुद्रा में ठहर जाना
अनादर से अर्पित मान की
भंगिमा में बोलते जाना
प्रेम में करना बतकही
अंग-अंग अर्पित कर
सुन्दर रूप में रमना
उज्जयिनी की
जनियों के तज कर
आता नही है
हर किसी को
मूल संस्कृत से अनुवाद : राधावल्लभ त्रिपाठी