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पसरा जल / विजेन्द्र

फैले हुवै जालो के बीच
मैं जिन्दा हूँ
वे मुझे फाँसने को
बिछाय गये है
जिससे में
सच को नकानता हूँ
उनके अन्यायों पर चुप रहूँ
एक खौफनाक पंजा
मेरी तरफ बढ़ता आ रहा है
मैं उसकी हिदायतैं मानूँ
मैं उसे अपनी उगती फसल दूँ
पके आमों के बगीचे
लीचियों से लदे पेड़
वह मेरे मन पर
क़ाबिज़ होना चाहता है
जो कमज़ोर देषांे को
तबाह कर रहा है
लोग दहशत से चुम हैं
वह स्वर्ण मुद्राओं से
मेरा ज़मीर खरीदता है
मेरी आँखे, मेरे कान
मेरे हाथ और
अंदर की धड़कनें
मैं भले ही उसके खिलाफ
न बोल सकूँ
पर मैं उससे घृणा कनता हूँ
अजाग्रत जनता पर वह
अपनी इच्छायें लादता है
कर्ज से दबे देश
भूख से बेहाल इलाके
कुपोषण से मरते बच्चे
वह जानता है
धन से वह मुझे
खरीद सकता है
यदि मैं उसाके विरूद्द बोलूँ
वह मुझे तबाह कर सकता है
जब तक
जनता जागती नही
वह मुझे दास बनाये रहेगा
विश्‍व बाजार में
नींद की गोलियो का सौदा बढ़ा है
विरोध करने की जगह
नींद की गोलियाँ खाना
मुझे रास आता है
जूतों के मोटे तले
और फास्ट फूड ने
मुझे कमजोर बनाया है

मई, 2005