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पसीने वाली कविता / प्रशान्त कुमार
Kavita Kosh से
पसीने की
पहली बूँद के साथ
माथे से फिसली एक कविता
और हवा के झोंके से सूख गई ।
आगे
हर बार चलते हथौड़े से
मज़दूर के माथे से
ढुलका पसीना ।
शाम
जब वह
थककर घर लौटा
कविता से नहाया हुआ था ।