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पहचान / सूर्यपाल सिंह
Kavita Kosh से
सोने की धूप चाँदी हुई
कांसा बनी फिर तांबई
बदलते चेहरों की
पहचान कितनी मुष्किल है?
सदा स्वच्छ दर्पण
साथ लेकर चलो।
दहके हैं गुलाब
दहके हैं विविध वर्णी गुलाब
बिलकुल गन्धहीन
केवल कीटनाषी गमक।
रंगो का सागर
पर पूरे उद्यान में
पसरा सन्नाटा
हवा भी सांस लेते
डरती है।
एक लँगड़ा आदमी
नाक पर पट्टी बाँध
छितरा देता कीटनाषी भुरभुरा।
न फर-फर उड़ती तितलियाँ
न गुनगुनाते भंवरे
न कोई महक
न जीवन न प्यार
ज़िन्दगी कैसे बचेगी यार!