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पहचान लेता हूँ / लिअनीद मर्तीनफ़
Kavita Kosh से
मैं पहचान लेता हूँ
अपनी कविताएँ
उन कविताओं में
जो लिखी जा रही हैं आजकल ।
सब कुछ है स्पष्ट यहाँ : मैं गाता हूँ
और दूसरे सुनते हैं मेरा गीत ।
उनकी आवाज़ें
पूरी तरह मिल जाती है मेरी आवाज़ से
पर आश्चर्य है तो यह :
खोकर यौवन और उत्साह,
थक कर भविष्यवाणी करते
मैं अब बोलता हूँ आहिस्ता और धीरे-से,
और मेरे पास कहने को जो बचा होता है
उसे मैं सुनता हूँ दूसरों के मुँह से,
जिसे कहने के लिए अभी मैंने मुँह खोला नहीं होता
उसकी पहले ही वे कर चुके होते हैं घोषणा ।
और जो कुछ देख रहा होता हूँ सपने में
उसे बता चुके होते हैं वे
सुबह होने से पहले ।
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह