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पहली बार जब देखा तुम्हें / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
कैसे भूल सकता हूँ वो शाम
बढ़ा चला आता था तिमिर
रौशनी पड़ रही थी मद्धम
और घिरता जा रहा था मैं
एक अतल निराशा में
पहली बार जब देखा तुम्हें
एक लहर सी उठी
ठहरे हुए समंदर में कहीं
हवा में लहराकर बिखरने लगे
चंपा के मदमदाते फूल
और बहने लगी हँसी तुम्हारी
मेरे भीतर
निश्छल निर्मल जल सी
मचलने को आतुर हुआ मन
जाने कितनी इच्छाएं
जाने कितनी अभिलाषाएं
जाने कितने देखे-अदेखे स्वप्न
साकार होने को
बेताब से होने लगे
लगा कि जैसे हटने लगा
बोझ कोई मन से
लगा कि जैसे छँटने लगी
धुँध कोई नज़र से
लगा कि जैसे बसंती फूल सा
खिलने लगा मैं
लगा कि जैसे जाग गया हूँ
अतल, अगम किसी गहरी नींद से
पहली बार जब देखा तुम्हें
2006