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पहले जैसा प्यार / सत्यवान सौरभ

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मतलबी रिश्ते-मित्रता, होते नहीं खुद्दार!
दो पल सुलगे कोयले, बनते कब अंगार!

आखिर किस पर अब यहाँ, करे स्व: ऐतबार!
करते हो जब खास ही, छुपकर हम पर वार!

घर में पड़ी दरार पर, करो मुकम्मल गौर!
वरना कोई झाँक कर, भर देगा कुछ और!

रिश्तों में जब भी कभी, एक बने अंगार!
दूजा बादल रूप में, तुरंत बने जलधार!

सुख की गहरी छाँव में, रिश्ते रहते मौन!
वक्त करे है फैसला, कब किसका है कौन!

मित्र मिलें हर राह पर, मिला नहीं बस प्यार!
फेंक चलें सब बाँचकर, समझ मुझे अखबार!

अब ऐसे होने लगा, रिश्तों का विस्तार!
जिससे जितना फायदा, उससे उतना प्यार!

फ्रैंड लिस्ट में हैं जुड़े, सबके दोस्त हज़ार!
मगर पड़ोसी से नहीं, पहले जैसा प्यार!

भैया खूब अजीब है, रिश्तों का संसार!
अपने ही लटका रहें, गर्दन पर तलवार!

अब तो आये रोज ही, टूट रहें परिवार!
फूट-कलह ने खींच दी, आँगन बीच दीवार!

कब तक महकेगी यहाँ, ऐसे सदा बहार!
माली ही जब लूटते, कलियों का संसार!