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पहले तेरी जेब टटोली जाएगी / वीरेन्द्र खरे अकेला

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पहले तेरी जेब टटोली जाएगी
फिर यारी की भाषा बोली जाएगी
 
तेरी तह ली जाएगी तत्परता से
ख़ुद के मन की गाँठ न खोली जाएगी
 
नैतिकता की मैली होती ये चादर
दौलत के साबुन से धो ली जाएगी
 
टूटी इक उम्मीद पे ये मातम कैसा
फिर कोई उम्मीद संजो ली जाएगी
 
कौन तुम्हारा दुख, अपना दुख समझेगा
दिखलाने को आँख भिगो ली जाएगी
 
कह दे, कह दे, फिर मुस्काकर कह दे तू
"तेरे ही घर मेरी डोली जाएगी"
 
झूठी शान 'अकेला' कितने दिन की है
एक ही बारिश में रंगोली जाएगी