भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहले ले लिया मुझे / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
पहले ले लिया मुझे !
फिर से दे दिया मुझे !
मेरा ही भार कहाँ गया
मुझे याद नहीं
इस पर भी जाने क्यों
कोई अवसाद नहीं
अहम् के विचार के कहार
कहाँ हार गए
सोचूँ तो सूझे भी नहीं
कहीं ठीया मुझे !
क्या था उन हाथों में
भारीपन फूल हुआ
ज्यों का त्यों है शरीर
लेकिन सब छुआ-छुआ
छुअनों के इश्तहार
कहते हैं बार-बार
मेरी पल-प्यास गई
पल-पल ने पिया मुझे !