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पहाड़ अब हमसे बातें करने लगे / महेश सन्तोषी
Kavita Kosh से
अब मैं पहाड़ों पर प्यार बोने नहीं आता।
मैं यहाँ पुरानी यादें ढोने भी नहीं आता।
क्यों आता हूँ अब भी मैं इन पहाड़ों पर?
खुद मुझे कुछ समझ में नहीं आता।
अब भी मेरा पहाड़ों से बातें करने का मन है,
तन उनका भले ही चट्टानों से बना है
पर मन तो बादलों जैसा नम है।
सदियों से आँखों में सावन संजोये हैं, ये पहाड़,
अभी थोड़ी देर पहले ही तो रोये हैं, ये पहाड़,
इनके सीने से लगी दर्द की घाटियाँ हैं
सामने आँसुओं के झरने हैं।
आप नहीं समझेंगे,
ये पहाड़ अब हमसे बातें करने लगे हैं
कुछ कहने लगे हैं, कुछ सुनने लगे हैं।
दर्द का एक सिलसिला है पहाड़ों तक
ये पहाड़ उसी दर्द के सिलसिले हैं।