भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहिराबथि से पुहुपक हारे / मैथिली लोकगीत
Kavita Kosh से
मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
पहिराबथि से पुहुपक हारे
मुखसँ आँचर छन-छन टारे
दुहु कर झांपल हम बरु नारी
कर टारथि हरि कहि परतारी
नयनक पलक लगाओल नीके
पलक उघारथि चैन न जी के
भूषण साजथि से बरजोरी
श्याम किरण सहि श्यामलि गोरी
बल कय पुहुपक शयन सुताय
हम धनि मुइलहुँ सहमि लजाय
उर-सर फूल भमर कर पाने
जत छल मान कयल हम दाने
कुमर कठिन निशि बीतल आजे
परम निठुर थिक पुरुष समाजे
कथि लय कहब हम किछु भल मन्दा
मनसिज हतब हतब हम चन्दा