पहिलोॅ सर्ग / कैकसी / कनक लाल चौधरी 'कणीक'
पहिलोॅ सर्ग
राम चरित के संग-संग रावण चरित्र भी आबै
दोन्हू चरित्रोॅ के मिलला पर रामायण कहिलाबै
मर्यादा आदर्श त्याग के राम प्रतीक अच्छाई
अहंकार, आतंक, क्रूरता रावण केरोॅ बुराई
सूर्यवंश के कथा कहानी दुनियाँ सौसें मानै
मगर रक्ष वंशोॅ के किस्सा गोटे-खाड़ें जानै
आय सुनाबौं रक्ष वंश के अजबे-गजब कहानीं
जे किस्सा तैय्यार भेलै कत्तेॅ गन्धोॅ केॅ छानी
देवासुर संग्राम के किस्सा धरम गं्रथ में आबै
एक पिता के दू टा पूत ठो आपन्हैं में टकराबै
दोन्हूं के रहै अलग प्रवृत्ति चाहै त्रिलोक के सत्ता
एकें सात्वकि राह टटोलै दूजें तामसी रस्ता
सात्वकि पूत तेॅ देव कहाबै दैत्य तामसी भेलै
सत्ता के हथियाबै खातिर युद्ध निरन्तर होलै
कैक युद्ध के बाद देवें स्वगोॅ के सत्ता पाबै
दैत्यगणों केॅ मारी-पीटी अलगे ठियाँ भगाबै
स्वर्ग लोक पर राज करै लेॅ एक इन्द्र पद बनलै
इन्द्रोॅ केॅ सहयोग करै लेॅ इक उपेन्द्र पद होलै
दोन्हूं मिली केॅ स्वर्ग चलाबै होतें रहै सुशासन
मगर कुछु सालोॅ के बादें देवें पाबै कुशासन
इन्द्र पदोॅ पर आसीन देवा प्रभुता मद में छैलै
काम-वासना सुरा सुन्दरी के फेरें पड़ि गेलै
इन्द्र व्यसन पर कोप करि प्रभुता दैवें कम लाबै
वेशी प्रभुता दै उपेन्द्र, वें विष्णु रुप सजाबै
पर विष्णु के रुपें उपेन्द्रें इन्द्र गुरुपद मानै
विष्णु के लघु पद केॅ बूझी सहयोगी ही जानै
यै बीचें दैत्यें ने सगरो करै बहुत विध्वंस
सब लोकोॅ में फैले लागलै दैत्योॅ के आतंक
दैत्योॅ से देवोॅ केॅ बचाबै खातिर विष्णु उतरलै
भिन्न-भिन्न योनि में आवी हौ फेनू अवतरलै
सबसे पैन्हें मछली बनिके हयग्रीवोॅ के मारै
दोसरोॅ रुपें कछुवा बनी केॅ देवगणोॅ केॅ उद्धारै
तेसरोॅ रुप बराह के लैकेॅ हिरणाक्ष संहारै
चौथो बेरी नरसिंग रुपै हिरण्यकश्यपु मारै
दैत्यराज तीनों जे मरलै परतापी-बलशाली
ब्रह्मा के वरदानी मरैथैं दैत्य-सिंहासन खाली
असुर निशाचर राक्षस में तवेॅ सभे दैत्यगण बंटलै
अलग-अलग पंथों में रहि-रहि ओकरोॅ ताकत घटलै
बहुत काल के बादे अैलै महिष असुर वरदानी
स्वर्ग जीति देवोॅ केॅ बान्है लड़लै सीना तानी
ब्रह्मा के वरदान के आगू पुरूष पड़ै नै भारी
तब देवें सभ निज कोपोॅ सें प्रगट कराबै नारी
महिष मारि भयमुक्त करैलकै नारी रुपा देबी
राज स्वर्ग लै देवगणें फिन मनमा राखै सेवी
फेनू इक अन्धड़ उठि अैलै स्वगोॅ के राज छिनैलै
शुभ-निशुम्भ के हाथे देय केॅ बहुत यातना भैलै
महिषासुर सें बेशी दोन्हूं देव गणोॅ के सतैलकै
ब्रह्मा के वरदान के रहते फेनू वहीं गत पैलकै
दू बेरियाँ जे स्वर्ग छिनैलै देव परास्त जे भेलै
असुरा सभ मन ही मन जुटि केॅ आपनोॅ बल केॅ तौलै
छिटपुट युद्ध तेॅ होथैं रहलै सुर असुरा के संग
मगरकोय असुरापति रण में नहीं देखाबै रंग
दैत्य सभे पातालें बसलै लंका बसलै असुरा
धीरे-धीरे रक्ष संस्कृति पनपेॅ लागलै पूरा
लंका तखनीं गढ़ राक्षस के राजा भेलै सुमेल
ओकरा मन में उपजेॅ लागलै देव लड़ै के खेल
लंकेश्वर के तीन पुत्र में मंझला रहै बलशाली
महा पराक्रमी सेनापति अति योद्धा भेलै माली
पुत्र के बल ही सैन्य सजाय केॅ चललै रण के ओर
माल्यवान सुमाली पुत्र केॅ देलकै रथ के डोर
रथ हाँकने सैन्य बल साथें जाय पहुँचलै सुरपुर
सुरपति केॅ ललकारेॅ लागलै युद्ध करै लेॅ आतुर
माली के रण कौशल देखी देवोॅ केॅ भय भेलै
बहुत देवता मार के डर सेॅ जन्नेॅ-तन्नेॅ नुकैलै
वही समय में इन्द्रोॅ के बज्जड़ हाथों से छुटलै
वै बज्जड़ से नृप सुमेल के हड्डी-गुड्डी टूटलै
पिता के हालत देखि केॅ माली बहुत ताव लै बढ़लै
सुरपति केॅ पटकी केॅ ओकरा छाती पर फिन चढ़लै
विष्णु देखी पराजय निश्चित सुदर्शन लै धाबै
असुर सेनापति माली के सिर चक्रोॅ सें कटबावै
दोन्हूं के शव लै केॅ असुरा भागै लंका ओर
लंकेश्वर संग माली मरैलै सगरो मचलै शोर