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पाँच नगर : प्रतीक / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

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दिल्ली


कच्चे रंगों में नफ़ीस

चित्रकारी की हुई , कागज की एक डिबिया

जिसमें नकली हीरे की अंगूठी

असली दामों के कैश्मेम्प में लिपटी हुई रखी है ।


लखनऊ


श्रृंगारदान में पड़ी

एक पुरानी खाली इत्र की शीशी

जिसमें अब महज उसकी कार्क पड़ी सड़ रही है ।


बनारस


बहुत पुराने तागे में बंधी एक ताबीज़ ,

जो एक तरफ़ से खोलकर

भांग रखने की डिबिया बना ली गयी है ।


इलाहाबाद


एक छूछी गंगाजली

जो दिन-भर दोस्तों के नाम पर

और रात में कला के नाम पर

उठायी जाती है ।


बस्ती


गाँव के मेले में किसी

पनवाड़ी की दुकान का शीशा

जिस पर अब इतनी धूल जम गई है

कि अब कोई भी अक्स दिखाई नहीं देता ।

( बस्ती सर्वेश्वर का जन्म स्थान है । )