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पांचाली / दिनेश बाबा

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वीर भोग्या द्रौपदी
पांच श्रेष्ठ नरपुरुषोॅ के
भार्या छेलौह तोंय।
हेकरा में कौतुके नैं
अचरजो होय छै,
है सोची केॅ कि
हौ महाबलि पुरुषोॅ के
अकेला दम, असकेरी जान
कैसें एक सूतोॅ में बान्ही केॅ
रक्खेॅ सकलोॅ रहौ तोंय!

हे दीव! सच में
धन्य तेॅ तोहें छेब्हे कर्होॅ
किंबा, हौ श्रेष्ठ पुरुष ही
महान छेलाह, जे
पृथक-पृथक समय में
स्नेह-भाजन छेल्हौं तोरोॅ
आरू तोरोॅ जान छेल्हौं!
कैन्हें कि
ई तेॅ संभवे नैं छै
कि वैमें सें कोय भी
पुंषत्वहीन, क्लिव रहलोॅ हुवेॅ।

प्रेम के मोहनी मंत्र
हौ की छेलै कृष्णे!
कि एक्के सेच, एक्के समझ
आरू विचारोॅ के
एक्के सूतोॅ में तोहें
हुनका आबद्ध करो केॅ
रक्खेॅ पारल्हौ!

हे पांचाली!
प्रेम के अदम्य प्यास जगावैवाली
आदर्श पत्नी, आदर्श नारी,
तोहें धन्य छेल्ही,
हे कृष्णे! तोहें धन्य छेल्हौ।
हे रूपगर्विते!
आपनोॅ अपरूप, कंचन कायिक
कांतिमान सौंदर्य शिखा सें
काम बुभुक्षित नर वीरोॅ के
शलम जुगना
जलावैवाली, कामिनी
तोहें धन्य छेल्हौ।
धन्य छेल्हौं तोरोॅ लाघव
धन्य तोरोॅ सदाचरण छेल्हौं
जैमें रूप, आरू तीव्र मेधा के
अद्भुत संतुलन छेल्हौं।

हे भुवनमोहिनी!
अलौकिक छेल्हौं तोरोॅ सम्मोहन
जैमें तोरोॅ पाँचो
परपुंगव पति
मोहाविष्ट रं, आबद्ध रहलौं
कोय पालतू जीवोॅ नाँखी
सतत अनुगामी रहलौ।
निजी पत्नी के रहतेॅ होलेॅ भी
तोरोॅ, सिर्फ तोरोॅ स्नेहकामी रहलौ।
आपनोॅ प्रतिशोध के
भीषण ज्वाला में
अरि सिनी केॅ जलाय केॅ
राख करै के
तोरोॅ दुर्नि्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रवार कामना में
ऐन्हों अदम्य क्षमता
सच्चे में, भारतीय नारी
स्वाभिमानोॅ के
सोपान छै,
यहीसें तेॅ
भारतोॅ के नारी महान छै
भारतोॅ के नारी महान छै।