भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाखी जागे भोर में / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

215
जन -सेवा के नाम पर ,लूट लिया है देश।
भीतर कपट कटार है, बाहर उजला वेश ।
216
रोटी के लाले पड़े, इतने थे कंगाल।
अब अरबों में खेलते, इतने मालामाल ।
217
जो रोटी का चोर था, मिली है उसको जेल ।
चौराहों पर खेलते, डाकू खूनी खेल ।
218
पाखी जागे भोर में, करते यह गुणगान ।
‘सबको सुख देते रहो, जब तक तन में जान ॥
[ 7-6-2017]