पानी का रंग / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’
जो पानी का रंग भी, गर होता गुलाबी
मछलियाँ समंदर की होती शराबी
ये मोतियाँ रंगीन हो जाती शायद
फिर लहरों के अंदाज़ होते नवाबी।
जो पानी का रंग भी गर होता गुलाबी
तलाबों में कोमल कमल जो भी खिलते
फिर पत्ते कमल के हो जाते गुलाबी
ये ताल तलैया के फिर क्या थे कहने
रहती सीपी नशे में व हंसा शराबी
जो पानी का रंग भी गर होता गुलाबी
ये नहरों के पानी जो खेतों में बहते
लहराते फसल होती क्यारी गुलाबी
ये गेहूँ की बाली सुनहली न होती
ये हरियाली बन जाती सिन्दूरी लाली
जो पानी का रंग भी गर होता गुलाबी
नदियां इतराती फिरती रंगीली लहर में
ये बर्फीली चादर भी होती गुलाबी
घटाएँ भी सावन की रंगीन होती
बरसती ये बूँदे हो जाती गुलाबी
जो पानी का रंग भी गर होता गुलाबी
ये पानी का प्याला भी हाला-सा लगता
हम पीते पिलाते हो जाते शराबी
चमकते पसीने से खिल जाता चेहरा
अंदाज आँसुओं के भी हो जाते रूआबी
जो पानी का रंग भी गर होता गुलाबी