भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पानी की बस्ती / प्रभात
Kavita Kosh से
सूखे तालाब में खड़ी थी ग्रीष्म की वनस्पति
आक कटैड़ी
फैला था कूड़ा-कर्कट
अब सब तैर रहा है पानी पर बरसात के बाद
मेंढक, साँप, केकड़े और मछलियाँ
एक घर की प्रतीक्षा में
रह रहे थे धरती पर इधर-उधर ओनों-कोनों में
जलमुर्गियाँ और बत्तखें जीवन काट रही थीं
जाने किन राहत शिविरों में
अब सबको अपने घर मिल गए हैं
सुनो तो कैसा कलरव है धरती पर पानी की बस्ती में