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पानी बरसावोॅ नी / दिनेश बाबा

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गरम सें आकुल-व्याकुल धरती
पर पानी बरसावोॅ नी
हे बरखा के देव इन्द्र जी
अग-जग केॅ सरसाबोॅ नी।

बड़ा तेज छै जलन धूप के
आगिन रङ गरमावै छै
तावा जुगना धरती तपलोॅ
मछरी रङ झरकावै छै
हाहाकार मची रहलोॅ छै
ठंडा जल बरसावोॅ नी।

बीतलै दिन मक्का बूनै के
धान खेत भी परती छै
फटै बिवाई जेना गोड़ में
फटलोॅ वही रङ धरती छै
किरपा करी केॅ हे जगत्राता
हर-हर जल बरसावोॅ नी।

जेठ-बैसाखं खूब तपैलकै
आबेॅ अखाढ़ में जारोॅ नैं
बरखा के बदला में सबकेॅ
गरम सें एतना मारोॅ नैं
दिल खोली केॅ हर-हर बरसोॅ
सब के मन हरसावोॅ नी।

सकल चराचर जीव-जीव के
तों स्वामी अन्नदाता छोॅ
प्राणाधार छोॅ तों सृष्टि के
तोंही भाग्य-विधाता छोॅ
बरखा-जल सें सराबोर करी
सबके प्राण बचावोॅ नी।

आरत-प्राण दुभुक्षित काया
सें तोरा गोहरावै छी
सब्भे मिली-जुली केॅ बाबा
तोरे महिमा गावै छी
रहथौं तोरोॅ मान देवता
जल अमृत बरसावोॅ नी।
जग प्यासा तनमन प्यासा छै
सबके हिया जुड़ावोॅ नी।