पानी बाबा - / प्रतिभा सक्सेना
भूरे रुएँ, धुएँ सा तन, पानी बाबा आया!
नई फसल काँधे पर लादे, बुँदियाँ बट-बट डोरी बाँधे,
टूटे-फूटे दाँत निपोरे, दसों पोर पानी में बोरे,
छींटे उड़-उड़ पड़ते, हँफ़नी से यों भर आया!
चढ़ी साँस खींचे, झुक झुक के चले बाय का मारा,
जटा जूट बिखरा ऊपर से, लथपथ-सा बेचारा,
बूढ़-पुरातन मनई, डोले सलर-बलर काया!
हिलता-डुलता भारी भरकम, कहीं रुका सा ले लेता दम,
लाठी टेक, चौंक कर यकबक टार्च फेंकता एकदम.
बज्जुर बादल गरज- तरज, तीखा कौंधा छाया!
उमड़-घुमड़ कर बोले अपने अगड़म-बगड़म बोल,
करता गड़ड़-गड़ड़ गम, थम-थम जैसे बाजे ढोल .
ठोंक बजा कर पाँव बढ़ाता, सबको भरमाया!
झल्ली भर भर आम, पल्लियाँ भर भुट्टे-ककड़ी,
फूले हुए फलैंदे जामुन, हरी साग गठरी,
अँगना भर नाती-पोते, छू-छू कर दुलराया!
अन-धनवाली झोली खाली, में हरियाली भर दी,
मोर-नाचते बूटों वाली हरी चुनरिया धर दी .
टर्-टर् दादुर, पी-पी कर पपिहे ने गुहराया!
मटियाले पानी में, हाथ घँघोता छोटा लल्ला,
बौछारों में भीगे, भागे- कूद मचाए हल्ला-
'निकल आओ रे, ये कागज़ की नाव चली भाय्या'!
आज जुड़ाई दरकी छाती, कब की सूखी- रूखी धरती,
रोम-रोम हरसाया, सुख पा, नैन-तलैयाँ सरसीं.
माटी में सोंधी भभकन, हर झोंका पछुआया!
नेहा-मेहा लाया रे, पानी बाबा आया!