भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पापा! गर मैं चिड़िया होता / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पापा! गर मैं चिड़िया होता
बिन पेड़ी छत पर चढ़ जाता।

भारी बस्ते के बोझे से
मेरा पीछा भी छुट जाता।

होमवर्क ना करना पड़ता
जिससे मैं कितना थक जाता।

धुआँ-धूल और बस के धक्के
पापा! फिर मैं कभी न खाता।

कोई मुझको पकड़ न पाता
दूर कहीं पर मैं उड़ जाता