भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पापा लाना दही-बड़े / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पापा लाना दही-बडे़,
दही-बड़े जी, दही-बड़े।
पड़े दही में जो मुसकाएँ,
सौंठ पड़ी हो तो इतराएँ।
सी-सी करके याद दिलाएँ,
आओ, खाओ दही-बड़े।
दही-बड़े जी, दही-बड़े!