पार्क में हँसी / मुकेश मानस
एक
एक औरत हँसने का प्रयास करती है
दूसरी हँसने के नाम पर शरमाती है
तीसरी उसकी शर्म पर खिलखिलाती है
चौथी तो हँसते हुए
किसी भेड़ सी मिमियाती है
दो
लड़के किसी की चाल पर हँसते हैं
फिर अपनी बेबसी, अपने हाल पर हँसते हैं
और जिसका मिलता नहीं जवाब उन्हें
एक ऐसे ही सवाल पर हँसते हैं
तीन
बीच की उमर वाले, ओट में जा करके
पेट को हिलाकर के, हँसते हैं खुलकर के
मगर ऐसा लगता है कि उनकी हँसी के
ले गया हो कोई सब रंग चुराकर के
चार
बूढ़े धीरे-धीरे आते हैं, घेरा बनाते हैं
तालियाँ जो पीटते हैं, पीटते ही जाते हैं
फिर हाथों को उठाकर के एक साथ हँसते हैं
साँस जो उखड़ती है तो हँसी भूल जाते हैं
पाँच
आता है एक बन्दा, सदा हँसते-हँसते
चले हँसते-हँसते, रुके हँसते-हँसते
करे बात देखो, वो हँसते-हँसते
सब कहें पागल, उसे हँसते-हँसते
2001