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पाल / मिख़अईल लेरमन्तफ़ / गौतम कश्यप

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सफ़ेद लहरों पर बढ़ी जा रही है एक नाव,
समुद्र के अस्पष्ट नीहार में
स्वदेश में क्या छोड़ रहा है वह ?
सुदूर किसे पाने की आस में... ?

हवा के दबाव से, मस्तूल चरमराती
सागर की लहरों संग, वायु - तरंगें हैं खेलती
ओह ! खुशियों की कामना उसे है नहीं
ना ही खुशियों से वह दूर भाग रही ।

नीचे बह रही है धारा नभोनील, चमकीली
और ऊपर है, सुनहरे सूर्य का प्रकाश रूपी आशीर्वाद,
पूछता है झंझावातों से, अब वह हठी
क्या तुम नहीं कर सकते विश्राम... ?

मूल रूसी से अनुवाद : गौतम कश्यप

और अब यह कविता मूल रूसी भाषा में पढ़ें
          Михаил Лермонтов
                  Парус

Белеет парус одинокой
В тумане моря голубом!..
Что ищет он в стране далекой?
Что кинул он в краю родном?...
Играют волны — ветер свищет,
И мачта гнется и скрыпит...
Увы! Он счастия не ищет
И не от счастия бежит!
Под ним струя светлей лазури,
Над ним луч солнца золотой...
А он, мятежный, просит бури,
Как будто в бурях есть покой!