पावस पयस्विनी / पयस्विनी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
चित चेति चैत तरु लखि विशाख, चरि चर-चाँचर जगतीक लाख
जेठहु ठुट्ट नहि ठाढ़ि-पात, निःशेष हरिअरी चारु कात
भूखक भाफे हँफइत जरइत, किछु चरी गगन - गिरि दिस बुझइत
नव-नव वनवाध क लय उदेश, उद्ग्रीव बढ़लि सभ दिशा देश।
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सित असित नील मेघक धूमिल, धूसर भास्वर कत रंग रूप
छपइत व्योमक पथ पसरि चलल, चपलाक पुच्छ चंचल अनूप
बनपथ अतीत गिरि-शृंग सिंघ, अछि पुलकित रोम कदम अंग
आषाढ़, जेठ, साओन, भादव, अछि चरण चारि लागल कादव
थन आर्द्र पुनर्वसु पुष्ट श्लिष्ट, अछि मघा घोघ, पूर्वा अशिष्ट
रोमन्थ उत्तरा, हस्त हास, चरते जा धरि कास क विकास
छापल पश्चिम, दखले दच्छिन, उत्तर उतरल, पूबहुँ पसरल
फिरइत दिगन्त, चलइत अनन्त, नभ-कानन परिसर चरय हन्त!
पवमान देखि दिनमान छपित, अनुमानि साँझ, बुझि समय समित
बढ़इत अन्हार, रातिक पछाति, चौकल उछिन्न घन धेनु पाँति।।
चरवाह हवा उचिते झटकल, झंझा-झौंके झटपट समटल
अटपट सन जे सभ छल अवड, बरजल तकरा लय तडित - दण्ड
सब चललि झटकि हुँकड़ैत झुण्ड, झुकि-झुकि झौंकेँ सहसा सशंक
गति - अतिरेकेँ सुर - रज प्रचण्ड, उड़ि चलल बलाका कण अखण्ड
हरियर कचोर नभ ओर छोर, गोचर चरइत, क्रम-क्रम बढ़इत
क्षितिजक दिस ससरल आबि रहल, चंचल गतिएँ हुलसल फुलसल
तृण तरु वन छनछन विकल विमन, मन पड़ले प्यासल वत्स अपन
वात्सल्य भरल रससँ उमड़ल, हुँकडैत पन्हायल पय उछलल
टप-टप चुबइछ दूधक धारा, जीवनमय उज्ज्वल शुचि-सारा।।
ई नेह-बिन्दु थिक अमृत सिंधु, वत्सलता - रजनी रजत - इन्दु
रससँ भरते अंग-जग सागर, डाबर डाबा, सरिता गागर
झरते नवनीते शिला-खण्ड, धृत भरसे खेत पथार कुण्ड
जमते हिम-दधि गिरि शिखर-शिखर, मन-वन हरिअर पावस परिसर
पुनि तृप्त तृषित जगती-रसना, शस्यक प्रश्स्यिता घर-अङना
जननी धन-धेनुक धन्य हृदय, जय-जय पावस पयस्विनी जय