भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिंटू जी ने दिल्ली देखी / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखी दिल्ली पिंटू जी ने,
पिंटू जी ने दिल्ली देखी।

उछल-उछलकर, दौड़-भागकर,
पिंटू जी ने देखी दिल्ली,
बोले-है यह जादूनगरी,
दिल्ली है दुनिया की किल्ली!

खूब बड़ा सा लाल किला है,
ऊँची-ऊँची कुतुबमीनार,
जंतर-मंतर पूरा तंतर,
अजब-अनोखा सा संसार।

फिर देखे सुर्री जैसे घर
जगर-मगर सारी दिल्ली,
देखा ीाीड़-भड़क्का, बोले-
ढिल्ली है दिल्ली की किल्ली।

ऊँची-ऊँची एक इमारत
झुककर देखी पिंटू जी ने,
बोले-भैया, इस पर चढ़ क्या
हम भी आसमान को छू लें?

ऐसी दिल्ली, वैसी दिल्ली
समझ न पाए, कैसी दिल्ली,
आखिर दिल्ली देख-देखकर
जेब हो गई उनकी ढिल्ली।

देखी भाई, देखी दिल्ली
दिल्ली में उड़ती थी खिल्ली,
लेकिन पिंटू जी थे पक्के
पिंटू जी ने देखी दिल्ली!