भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिता / अंजना टंडन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंतिम यात्रा पर निकले पिता
आँगन में कितनी जगह रह जाते हैं,

खाट के निचे चप्पल और छड़ी में
बैठक के रेडियो और जेब घड़ी में
टँगी टोपी और सब्जी की थड़ी में,

कितना कुछ हरा है
घर के बाहर लिखे छोटे नाम में
कितना कुछ भरा है,

सब ठीक है में गले रूधँते हैं
अम्मा के फोन अक्सर कटते हैं।