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पिता / अंजना टंडन
Kavita Kosh से
अंतिम यात्रा पर निकले पिता
आँगन में कितनी जगह रह जाते हैं,
खाट के निचे चप्पल और छड़ी में
बैठक के रेडियो और जेब घड़ी में
टँगी टोपी और सब्जी की थड़ी में,
कितना कुछ हरा है
घर के बाहर लिखे छोटे नाम में
कितना कुछ भरा है,
सब ठीक है में गले रूधँते हैं
अम्मा के फोन अक्सर कटते हैं।