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पिता / रेखा राजवंशी
Kavita Kosh से
मुझे याद आते हैं
दालान में बैठे, धूप सेंकते
और रसोई में
काम करती माँ के लिए
जोर-जोर से अखबार बांचते
रिटायर्ड पिता ।
राजनीति, अपराध और खेल के
दायरे से गुजरता अखबार,
चाय की चुस्कियों के साथ
सफ़र तय करता है,
और बासी खाने सा कोने में रखे
कूड़ेदान में जा गिरता है,
और समय बीतता जाता है ।
मैं लैटर बॉक्स के पास पड़ा हुआ
पुराना अखबार उठाती हूँ
और उसकी बासी खुशबू में
खोज लाती हूँ
अखबार बांचते पिता को
इतनी दूर यहाँ
कंगारूओं के देश में ।