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पिता का पत्र / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
पुत्र, तुरत लिख भेजो चिट्ठी, दिल्ली का दिल कैसा
क्या बारिश में यमुना ने है अपना रूप दिखाया
कहीं चिकनगुनिया-डेंगू ने फैलाई क्या माया
क्या जल का सचमुच संकट है, भागलपुर के जैसा।
सुना वहाँ बस काम-काम है; सोते कब हो ? लिखना
वहाँ एक सपना है: घर का पका-पकाया भोजन
दस हजार की खातिर जाना पड़ता है सौ योजन
यहाँ तुम्हारी चिन्ता में करुणाद्रित माँ का दिखना।
भीड़भाड़ से बचते रहना, कब बम ही फट जाए
घर ही कहाँ सुरक्षित होगा, जिस घर में रहते हो
देश छोड़ परदेश में पुत्तर कितना दुख सहते हो
यही मनाता, दुख के ये दिन सबके ही घट जाए!
जैसे जी घबड़ाए, बेटा; घर वापिस आ जाना
जीवन सुख से कट जाए, क्या इससे ज्यादा पाना!