भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिता के लिए / बेई दाओ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: बेई दाओ  » पिता के लिए

फरवरी की एक सर्द सुबह
अंत में लगे सिंदूर के सारे वृक्ष उदासी का आकार हैं
पिता, तुम्हारी तस्वीर के सामने
आठ तहों में लिपटी हवा गोल मेज़ को शांत रखती है

बचपन की दिशा से
मैंने हमेशा तुम्हारी पीठ देखी
काले बादलों और भेड़ों के झुंड को तुम हांक कर ले जाते थे
सम्राटों की तरफ़ जाने वाली सड़कों पर चलते हुए

बड़बोली हवा अपने साथ बाढ़ ले आती है
गलियारों का तर्क लोगों के दिलों में बहुत गहरे गड़ा हुआ है
मुझे आज्ञा देते-देते तुम बेटे बन गए
तुम्हारा अनुसरण करता-करता मैं पिता बन गया

हथेली पर बहती है भाग्य की धारा
सूरज चांद सितारों को घुमाती रहती है
इकलौते एक पुरुष लैम्प के नीचे
हर चीज़ की दो-दो परछाईं बनती है

घड़ी की सुइयां दो भाई हैं जिनमें होड़ लगी हुई है
कि वे एक न्यूनकोण बना लें, फिर एक हो जाएं
बीमार तूफ़ान रात के अस्पताल में ढुलक रहा है
तुम्हारा दरवाज़ा खटखटाता हुआ

विदूषक की तरह आता है सूर्योदय
लपटें तुम्हारी बिस्तर की चादर बदलती हैं
घड़ी जहां रुकती है
समय का ढक्कन सीटी बजाता निकल जाता है

मृत्यु की उस गाड़ी को पकड़ें, चलिए,
बसंत के रास्ते पर
कोई चोर पहाड़ों के बीच ख़ज़ाना खोज निकालता है
कोई नदी चक्कर काटती है किसी गीत की उदासियों के
नारे दीवारों के भीतर छुप जाते हैं
यह दुनिया कोई ख़ास नहीं बदलती :
एक औरत मुड़ती है रात में घुल जाती है
सुबह होने पर एक आदमी बाहर निकलता है

अंग्रेजी भाषा से रूपांतरण : गीत चतुर्वेदी