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पिता पथिक / रश्मि विभा त्रिपाठी

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1
पिता- पराग!
बाल-भौंरे को बाग
समूचा सौंपें।
2
पिता- प्रभास!
जगें तो तम भूले
होशो-हवास।
3
पिता- प्रदीप!
करें अनोखी द्युति
तम की इति।
4
पिता- पूर्णिमा!
तिमिर की महिमा
मिटाने आते।
5
पिता- माणिक!
यह दिव्य रतन
दे तृप्ति- धन।
6
पिता- रजत!
प्रभा से सदा भरे
स्वर्ण- से खरे।
7
पिता- जुगनू!
चलूँ तो टॉर्च चली
तम की गली।
8
पिता- शत्रुघ्न!
प्रत्येक बाधा- विघ्न
देखते भागे।
9
पिता देव- से!
करते अनुग्रह
काटते 'ग्रह'।
10
पिता गीत- से!
शाश्वत गति- लय
शिशु अभय।
11
पिता सूर्य- से!
स्वर्ण- किरण बाँटें
तम को छाँटें।
12
पिता वेद- से!
पढ़के परित्राण
पा जाते प्राण।
13
पिता जेठ भी!
दिखाएँ दे के धूप
जग का रूप।
14
पिता कहाए
निष्कपट, झूठों को
आँख न भाए।
15
परोपकार
पितु का था एकल
जीवन सार।
16
पिता धकेलें
दुखों के पर्वत को
दुआ उड़ेलें।
17
पिता से मिला
प्रत्यक्ष या परोक्ष
मुझको मोक्ष!
18
पिता ने भरा
मन का खाली कोष
आशीष झरा।
19
पिता हैं फूल!
मेरे पंथ के शूल
चुनके खिले।
20
भले अदृश्य
पर पिता अवश्य
हाथ थामे हैं।
21
बैठे वे दूर
बनाएँ मेरे हेतु
सुख का सेतु।
22
भले हैं दूर
पिता दुआ से करें
पीड़ाएँ चूर।
23
हैं अगोचर
पिता पकड़े हाथ
चलते साथ।
24
पिता के संग
चली थाम उँगली
आनन्द- गली।
25
पिता से पाऊँ
आशीष- मकरंद
झूमूँ सानंद।
26
दिव्य दर्शन!
प्रेम- आनन्द- मूर्ति
करूँ वन्दन।
27
प्राय: निहारूँ
प्रेमानंद- प्रतिमा
पग पखारूँ।
28
अमंगल को
पिता टारें सदैव
निस्तब्ध 'दैव'।
29
पिता की वाणी!
पावन वेद- ऋचा
शुभ कल्याणी।
30
पिता पथिक
विदा दे द्वार बैठे
निंदा रसिक।
31
जिनके लिए
पिता थके न ऊबे
'निंदा में डूबे'।
32
पिता कोने में
किए- धरे को बन्धु!
व्यस्त धोने में।
33
पाया जो शाप!
पिता का एक पाप
था परमार्थ।
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