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पिता व बेटे की उम्मीदें / मुकेश कुमार सिन्हा

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पिता का बेटे के साथ संबंध
होता है सिर्फ बायोलोजिकल -
खून का रिश्ता तो होता है सिर्फ माँ के साथ
समझाया था डॉक्टर ने
जब पापा थे किडनी डोनर
और डोनर के सारे टेस्ट से
गुजर रहे थे पापा
"अपने मंझले बेटे के लिए"

जितना हमने पापा को पहचाना
वो कोई बलशाली या शक्तिशाली तो
कत्तई नहीं थे
पर किडनी डोनेट करते वक़्त
पूरी प्रक्रिया के दौरान
कभी नहीं दिखी उनके चेहरे पे शिक़न
शायद बेटे के जाने का डर
भारी पड़ रहा था स्वयं की जान पर

पापा नहीं रहे मेरे आयडल कभी
आखिर कोई आयडल चेन स्मोकर तो हो नहीं सकता
और मुझे उनकी इस आदत से
रही बराबर चिढ!
पर उनका सिगरेट पीने का स्टाइल
और धुएं का छल्ला बनाना लगता गजब
आखिर पापा स्टायलिस्ट जो थे!
फिर एक चेन स्मोकर ने
अपने बेटे की जिंदगी के लिए
छोड़ दी सिगरेट, ये मन में कहीं संजो लिया था मैंने!

पापा के आँखों में आँसू भी देखे मैंने
कई बार, पर
जो यादगार है, वो ये कि
जब वो मुझे पहली बार
दिल्ली भेजने के लिए
पटना तक आये छोड़ने, तो
ट्रेन का चलना और उनके आँसू का टपकना
दोनों एक साथ, कुछ हुआ ऐसा
जैसे उन्होंने सोचा, मुझे पता तक नहीं और
मैंने भी एक पल फिर से किया अनदेखा!
ये बात थी दीगर कि वो ट्रेन मेरे शहर से ही आती थी
लेकिन कुछ स्टेशन आगे आ कर
छोड़ने पहुंचे. किया 'सी ऑफ'!

पाप की बुढ़ाती आँखों में
इनदिनों रहता है खालीपन
कुछ उम्मीदें, कुछ कसक
पर शायद मैं उन नजरों से बचता हूँ
कभी कभी सोच कहती है मैं भी अच्छा बेटा कहलाऊँ
लेकिन
'अच्छा पापा' कहलाने की मेरी सनक
'अच्छे बेटे' पर,पड़ जाती है भारी

स्मृतियों में नहीं कुछ ऐसा कि
कह सकूँ, पापा हैं मेरे लिए सब कुछ
पर ढेरों ऐसे झिलमिलाते पल
छमक छमक कर सामने तैरते नजर आते हैं
ताकि
कह सकूँ, पापा के लिए बहुत बार मैं था 'सब कुछ'
पर अन्दर है गुस्सा कि
'बहुतों बार' तो कह सकता हूँ,
पर हर समय या 'हर बार' क्यों नहीं ?

रही मुझमे चाहत कि
मैं पापा के लिए
हर समय रहूँ "सब कुछ"
आखिर उम्मीदें ही तो जान मारती है न!!