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पिताजी-३ / ओम पुरोहित ‘कागद’
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रिटायरमेंट के
बीस साल बाद भी
नौकरी पर
कार्यग्रहण करने के दिन
खरीदी बाईसाइकिल को
झाड़ते-पूंछ्ते रहते हैं पिताजी ।
यात्रा पर निकलते वक्त
सौंप-समझा
ताकीद कर
जाते हैं
बूढी मां को ।
कभी-कभी
बाज़ार भी ले जाते हैं
हाथों में थाम कर
लौटते हैं
हरी सब्जियों से भरे
थेले को
हैंडल पर लटकाए
पैदल-पैदल
धीरे-धीरे !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"