भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पिपरा के पतियन सन / राम सिंहासन सिंह
Kavita Kosh से
पिपरा के पतियन सन मनुआ छन-छन डोल रहल हे।
चुहचुह चारो ओर अंधेरा
उजड़ल हे सब रैन बसेरा
घरे-घरे भूतवन के डेरा
इरखा-द्वेस-कलह के नागीन जहरे घोल रहल हे।
पिपरा के पतियन सन मनुआ छन-छन डोल रहल हे।
संख बजावबऽ हथ सब दुर्जन
जन-मन में हे रोदन-क्रंदन
दुर्दिन के हे भीसन गर्जन
दानवता ही मानवता के गुनवां तौल रहल हे।
पिपरा के पतियन सन मनुआ छन-छन डोल रहल हे।
सज्जन जन अब आगे आबऽ
चुप साध मत समय गमाबऽ
दुराचार के भूत भगाबऽ
घर में सुन्नर भाव जगाबऽ जे अनमोल रहल हे।
पिपरा के पतियन सन मनुआ छन-छन डोल रहल हे।
तू जब जगबऽ सब जग जयतो
जन-जन नया समाज बनयतो
भ्रष्टाचार तुरत मिट जयतो
उदयाचल में जग के देखऽ सूरज बोल रहल हे।
पिपरा के पतियन सन मनुआ छन-छन डोल रहल हे।