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पिया, पावस बरसै छै घनघोर / कुमार संभव
Kavita Kosh से
पिया, पावस बरसै छै घनघोर,
आशा में थमलोॅ हमरोॅ ई प्रीत के डोर।
दीया वारी, सेज संवारी, करि मिलन तैयारी,
की कहियौं तखनी ही घिरलै मेघ अनाड़ी,
सोचै छियै, मनें छगुनै विरह रात ई भारी
देखोॅ भींगी गेलोॅ छै, आँखी के दूनोॅ कोर,
पिया, पावस बरसै छै घनघोर।
पावस वियोग दादुर शोर मचाबै
रात अन्हरिया कुछु नै सुझावै,
कंत बिना हमरा पल-पल सताबै
दूजे कोकिन, दादुर के शोर,
पिया, पावस बरसै छै घनघोर।
पिया अबकी ही तेॅ छेलै गौना के वारी
बिना समझले तोही तेॅ देल्होॅ टारी,
गाछ-पात सगरोॅ छहरै तोरो ही छवि न्यारी
पिया पावस में तरसै छै मन मोर,
पिया, पावस बरसै छै घनघोर।