भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिया बिनु बैरिन बयस भई / स्वामी सनातनदेव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग पूर्वा-कल्याण, तीन ताल 28.7.1974

पिया बिनु बैरिन वयस भई।
काटे कटत नाहिं यह सजनी! मानहुँ विपति बई॥
बिना पिया रजनी कुतनी-सी सालत नित्य नई।
हिय में लगी अनल-सी, जासों तनु जनु लगत तई॥1॥
भार भयो वह जीवन, पै अब हूँ सखि! मैं न मुई।
जो विधना यह वयस न देती, होति न विपत्ति जई॥2॥
वैरिन वयस जरावति दिन-दिन छिन-छिन नित्य नई।
बिना पियाके मिले जियन मीचुहुँतें नीच भई॥3॥